सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को तलाक-ए-हसन प्रथा को लेकर कड़ी नाराजगी जाहिर की और स्पष्ट संकेत दिया कि वह इस प्रथा को रद (अवैध) करने पर गंभीरता से विचार कर सकता है। अदालत ने सवाल उठाया कि क्या आधुनिक और सभ्य समाज में महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली इस तरह की प्रथा को जारी रहने देना उचित है? कोर्ट के अनुसार, तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद अब तलाक-ए-हसन की संवैधानिकता पर भी पुनर्विचार जरूरी है। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुयान और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की तीन सदस्यीय पीठ कर रही है। पीठ ने संकेत दिया कि तलाक-ए-हसन को असंवैधानिक घोषित करने की संभावना पर विचार किया जा रहा है और यह मुद्दा समाज के व्यापक हिस्से को प्रभावित करता है, इसलिए इसे पांच जजों की बड़ी संवैधानिक पीठ को भेजा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया रद्द करने का संकेत
तलाक-ए-हसन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मुस्लिम पुरुष तीन महीने की अवधि में हर महीने एक बार “तलाक” बोलकर अपनी पत्नी से अलग हो सकता है। कोर्ट ने पूछा कि क्या यह प्रथा महिलाओं के सम्मान और समानता के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती? पीठ ने संबंधित पक्षों से कहा कि वे उन सभी कानूनी प्रश्नों का संक्षिप्त नोट तैयार कर कोर्ट को सौंपें जिन पर विचार करना आवश्यक हो सकता है। नोट मिलने के बाद कोर्ट इस बात का निर्णय करेगा कि क्या यह मामला बड़ी संवैधानिक पीठ को भेजा जाए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा—
“जब आप हमें संक्षिप्त नोट दे देंगे, हम मामले को पांच जजों की पीठ को भेजने की वांछनीयता पर विचार करेंगे। हमें बताइए कि कौन-कौन से कानूनी प्रश्न उठते हैं।”
भेदभावपूर्ण व्यवहार का मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई प्रथा बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित कर रही है और उसमें महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार दिखता है, तो न्यायालय हस्तक्षेप करने से पीछे नहीं हटेगा। अदालत ने इशारा किया कि यदि यह प्रथा महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचा रही है, तो इसे हटाना ही होगा।
कोर्ट ने कहा—
“यदि घोर भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है, तो इसका समाधान न्यायालय को ही करना पड़ेगा। पूरा समाज इससे प्रभावित होता है।”
क्या 2025 में ऐसी प्रथा स्वीकार्य है?
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने सख्त लहजे में पूछा कि क्या 2025 जैसे आधुनिक समय में महिलाओं को कमतर दिखाने वाली प्रथा को जारी रखना उचित है। उन्होंने कहा कि सभ्य समाज में महिलाओं की गरिमा सर्वोपरि होनी चाहिए और कोई भी धार्मिक प्रथा इस गरिमा का हनन नहीं कर सकती।
उन्होंने सवाल उठाया—
“यह कैसी प्रथा है? आप 2025 में इसे कैसे बढ़ावा दे रहे हैं? क्या एक सभ्य समाज को इसकी अनुमति देनी चाहिए?”
क्या है पूरा मामला?
यह मामला पत्रकार बेनजीर हीना की जनहित याचिका से जुड़ा है, जिसमें तलाक-ए-हसन को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन बताते हुए इसे प्रतिबंधित करने की मांग की गई है। याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता के पति ने वकील के माध्यम से तलाक-ए-हसन का नोटिस भेजकर संबंध खत्म करने का फैसला लिया, क्योंकि उनके परिवार ने दहेज देने से इनकार कर दिया था। इस मामले ने सामाजिक और कानूनी दोनों स्तरों पर बहस छेड़ दी है और अब सुप्रीम कोर्ट के अगले कदम पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं।